हमारी माँ
हमारी माँ
जब खिलता है नव कोपल, स्त्री की फुलवारियों में |
माँ बनकर, बदल देती है करुण रुदन को, मधुर किलकारियों में |
माँ कराती है परिचय, नव कोपलों का सृष्टि की सीमाओं से |
कोमल उंगलियो को पकड़,चलना सीखती है राहों पे |
माँ पाट देती हैं, दुखों के नदी के पाटों को |
और अहसास कराती ठंडी रेतों जैसा,जीवन की शुष्क धाराओं में |
माँ असीम हैं, माँ निर्बाद हैं, माँ त्याग की मूरत हैं |
माँ अगर हैं, तो तपती रेत में भी जीवन आबाद हैं |
माँ वेद हैं, माँ उपनिषद हैं, माँ ही हैं प्रथम गुरु का ज्ञान |
माँ आदि हैं, माँ अनंत हैं, जो दे देवताओं को भी जीवनदान |
माँ सर्व हैं, माँ सर्वज्ञ हैं, माँ सुखों की हैं खान |
माँ ममत्व की हैं पहचान, ईश्वर का पर्याय उसका नाम |
कष्टों में भी ईश्वर से पूर्व, सिर्फ याद आये ममतामयी माँ |
इन आम लफ्जों में बयाँ नहीं, ऐसी जीवनदायिनी माँ |
हे मानव ! बना अगर जो तू कृतघ्न, घिरा रहेगा तू पीड़ाओं में |
कृतज्ञ होना होगा तुझे, माँ के आँचल की गहराइयों से |
निश्छल माँ का मनोरम मन, रोम-रोम में बसा प्रेम का सोना |
अद्भुत माँ का रूप सलोना, नमन करें जिसे मन का हर कोना ।
-पुष्पा तिवारी (पुष्प)
दिल्ली