“हमारा प्रेम”
हमारा प्रेम एक नहीं प्रेम है लाखों हजार
रखते प्रेम को दिल में दिखाते नहीं बाजार
माता पिता भाई बहन सगे-संबंधी से प्यार
जिन्हें हमारे प्रेम पर भरपूर है अधिकार
प्रेम हमें है अपने इष्ट देवी देवताओं से अपार
जिनकी कृपा से चल रहा यह भरा पूरा संसार
प्रेम हमें है बहुत अपनी प्रकृति से यार
जिसने दिया हमें हवा, पानी ,पर्वत ,झरना , नदियां ,सागर
धरा, अंबर ,चांद ,तारे अद्भुत नजारों का भंडार
आसपास के जीवजंतु भी लगते हमको प्यारे
इनसे भी हमको प्यार है यह सदस्य हैं घर के हमारे
पति-पत्नी,पुत्र-पुत्री और दोस्तों के प्यार को क्या कहने ?
यह तो है परिवार के प्यार भरे गहने
बड़े बुजुर्गों से हमें मिलता है संस्कार
हम देते इज्जत उन्हें वह देते हमें प्यार
अपने धर्म संस्कृति से भी हमको है प्यार
प्रफुल्लित होते हैं हम मना कर अपना त्योहार
प्रेम के झरने को झर झर कर बहने दो
कहता है जो प्रेम खुलकर कहने दो
रीता यादव