हमारा अपना…….. जीवन
शीर्षक – स्वैच्छिक (हमारा अपना……जीवन)
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हमारा अपना जीवन स्वैच्छिक कहानी के अंतर्गत हम सभी जानते हैं की जीवन में पुरुष हो या नारी सबका अपना जीवन हमारा अपना जीवन एक सोच होती है क्योंकि सांसारिक जीवन में हम सभी एक दूसरे के पूरक होते हैं परंतु कहीं ना कहीं हम सब एक दूसरे के दबाव में जीवन जीते हैं।
हमारा अपना जीवन और हम सभी किरदार होते हैं। हम सभी अपने रिश्तों में बंधे होते हैं। और उन सभी रिश्तों के साथ-साथ हम अपने मन भावों मैं हम सब की सोच अलग-अलग होती है क्योंकि हमारा अपना जीवन स्वतंत्रता और निस्वार्थ भाव चाहता है। परंतु हमारा अपना जीवन बचपन से बुढ़ापे तक किसी न किसी दबाव में चलता है कभी धन कभी संपत्ति और या फिर हम कभी एक दूसरे के दबाव में भी जीते है। आज की कहानी स्वैच्छिक हमारा अपना जीवन के किरदार आप और हम ही हैं क्योंकि कोई भी कहानी हो कोई भी रचना हो उसमें किरदार तो शब्दों में हम और आप ही होते हैं भला ही फिल्मों में अभिनेता अभिनंय निभाते हैं।
परंतु फिल्में भी शब्दों की पटकथा के साथ बनती है और अपने चलचित्र के साथ-साथ बड़े पर्दे पर निभाते हैं हम सभी सांसारिक जीवन में सच और सच के साथ किरदार निभाते हैं जिसमें हम सब रिश्ते रखते हैं बहन भाई पति-पत्नी माता-पिता और एक रिश्ता प्रेमी प्रेमिका का भी होता है। हमारा अपना जीवन क्या कभी स्वतंत्र है सच तो यही है कि हमारा अपना जीवन अपना है ही नहीं हमारा जीवन एक दूसरे के साथ जुड़ा होता है और कहीं ना कहीं हम सब पुरुष और समाज के साथ-साथ नारी आधुनिक युग में भी दबाव में जीवन जीती है क्योंकि आज हम समझदार तो होते जा रहे हैं परंतु कहीं ना कहीं अभी भी नारी के प्रति पुरुष का वर्चस्व अहम के साथ भारी है। भला ही नारी जन्मदायिनी हो और जीवन में एक शक्ति और जीवन को समझदारी से चलाने वाली हो। फिर भी नारी आज भी पुरुष के विचारों से आज भी बेचारी है कहीं ना कहीं हम पुरुष समाज में हमारा अपना जीवन स्वतंत्र नहीं है जबकि पुरुष हर क्षेत्र में स्वतंत्र है भला ही वह है नाचने गाने वाली के कोठे पर जा सकता है या पर स्त्री से हम बिस्तर हो सकता है परंतु एक पत्नी अगर यह सब काम कर दे तो वह कूल्टा और बदचलन और बेवफा कहलाती है। तो आज की कहानी में एक सच के साथ हम हमारा अपना जीवन स्वैच्छिक कहानी के अंतर्गत हम सोचते हैं।
हमारा अपना जीवन भी स्वतंत्र होना चाहिए हम नारी है तो क्या हुआ हमारे भी एहसास एतबार और मन के विचार में स्वतंत्रता और स्वच्छंद का अवसर होना चाहिए जरूरी नहीं है कि हम समय के साथ-साथ अपने विचारों में आधुनिकता नहीं ला सकते और संस्कृति और संस्कार केवल नारी के लिए ही है या हमारे पुरुष समाज के लिए भी है क्योंकि हमारा अपना जीवन शब्दों की कहानी का अंतर्गत नारी और पुरुष ही जीवन का आधार है। पुरुष की उम्र कुछ भी हो वह नारी के साथ जुड़ सकता है परंतु नारी की उम्र कुछ भी हो वह पुरुष के साथ क्यों नहीं जुड़ सकती क्योंकि सामाजिक और सांसारिक जीवन तो शारीरिक और वैचारिक जीवन जिंदगी के साथ जुड़ता है या फिर हम यह सोचें कि पुरुष की मानसिकता अलग-अलग स्वाद के लिए होती है और नारी केवल एक चार दिवारी के साथ जुड़ी रहती है जबकि मानव समाज तो दोनों ही दोनों के मन दोनों के भाव दोनों के इच्छाएं समान होती हैं फिर भी आज नारी को कहीं ना कहीं दबाव में जीवन जीना पड़ता है और सच यह भी है अगर नारी को स्वतंत्रता दी भी जाए तब भी वह आज प्रतिशत मात्रा में स्वयं को बढ़ावा नहीं देती है और वह पुरुष के कंधे पर ही सोच डाल देती है। सच तो हमारी सोच है हमारा अपना जीवन भी हो सकता है अगर हम अपने नारी शरीर को भूलकर मन को मजबूत और सोच बढ़ने की तब नारी और पुरुष में अंतर खत्म हो सकता है अगर एक जन्म दायिनी है। तब पुरुष को भी जरूर नारी की है दोनों एक दूसरे के पूरक हैं हमारा अपना जीवन स्वैच्छिक एक अधिकार होना चाहिए और हम भी पुरुष समाज के साथ-साथ हमारा अपना जीवन भी होना चाहिए।
स्वैच्छिक कहानी हमारा अपना जीवन की अंतर्गत शब्दों की गरिमा के साथ-साथ परिवार में हम सभी को सहयोग और समानता होनी चाहिए। जिससे हमारा अपना जीवन भी स्वतंत्र अधिकार हो।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र