” हमसे तो परे हैं ” !!
आँखें जो करी बंद तो ,
सावन सी झरे है !!
यादों के झरोखे की ,
खिड़की जो खुली तो !
भीनी सी महक बिखरी ,
साँसों में घुली जो !
पल पल सहेजूं बीते ,
लगते जो खरे हैं !!
बीते जो पल सुनहरे ,
ठहरे ही नहीं हैं !
हमने कभी तो देखे ,
पहरे ही नहीं हैं !
अब थपकियाँ दुलार की ,
हमसे तो परे हैं !!
गुमनाम सी बस्ती में ,
अपने जो बसे हैं !
बंधन हैं रिवाजों के ,
तन मन को कसे है !
हमको मिले हैं जख्म जो ,
सारे ही हरे हैं !!
अधरों पे ना थिरकती ,
मुस्कानें कसीली !
बंदी हुई हैं खुशियाँ ,
लगती हैं हठीली !
पल पल यहाँ पे हम तो ,
जीते हैं , मरे हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )