हमसफर
कैसे तुम मेरे दिल की समझ जाते हो
जो मै न भी कहूं दिल की,तुम कह जाते हो
शायद इसलिए ही तुम हमसफ़र कहलाते हो ।
सफर के तज़ुर्बे मीठे हो खट्टे हो
हर पल हर क्षण हमसाया बने रहते हो
सात जन्म की मै क्या जानूं
पल पल खुशियां इतनी दे जाते हो
शायद इसलिए ही तुम हमसफ़र कहलाते हो।।
इबादत करते तुम सुबहो शाम,पर अपना नाम नहीं लेते
मेरी सलामत रहे जिंदगी ,सदा गुजारिश रहती तुम्हारी
उलझन में पड़ जाता मै रोशनी बन कर आती तुम
मै उम्मीदों में रहू न रहूं, सदा उम्मीदों में खड़ी हो जाती तुम
शायद इसलिए ही तुम हमसफ़र कहलाते हो।