हमसफर
** हमसफ़र **
************
चाँदनी रात में
चमकता चाँद
आया है नजर
देखते ही चाँद
खो गई नजर
न अगर मगर
चल रही वहाँ
शीत मंद मंद
हल्की पवन
हिलोरे खाता
मेरा मलीन सा
बावरा है मन
मैं अबोध सा
निहारता रहूँ
लगाके लगन
रहूँ मै मग्न
मंत्रमुग्ध हो
सूंघ तेरी गंध
भटकता रहूँ
मैं इधर उधर
जाऊँ किधर
मंदाकिनी हो
निर्झरिणी सी
जिंदगी में तुम
सदा बहती रहो
अनवरत हो
बन कर मेरी
स्वाति बूँद सी
प्यारी हमसफर
****************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)