” हमर कनिया हमर कविता “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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किछु न किछु
कविता हम गढ़ेएत छी !
कोनो अवसर के
छंद मे कहैत छी !!
कवि त कोनो खास नहि छी
छंद कें स्वक्छंद बनि नुकसी लगवैत छी !
ककरा एहि युग मे फुर्सत छैक ?
सुनत आ बेसि कें कहत
” वाह -वाह क्या बात है “!
आइ एकटा कविता बनेलहूँ
पढि कें श्रीमती जी कें सुनेलहूँ
मन रखयला कहलखिन
” वाह -वाह क्या बात है ”
हम गदगद भेलहुँ
पुरस्कार स्वरुप ५००/-
रूपया देलयनि
वो बड खुश भेलीह
आर कहलनि
” दोसर कविता कहिया सुनायब ” ?
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत