हमराज
जिन्हे हम अपना सबकुछ, लुटाकर हँसते रहते हैं।
हमे वो अपने दिल का मालिक, बनाकर दिल मे बैठे हैं।।
छुपाते कुछ नही हमसे, हमे सबकुछ बताते हैं।
दिखाते आँख वो हमको, हमीसे आँखे चुराते हैं।।
बने कुछ दोस्त ऐसे वो, हमे सबकुछ ही दे बैठे।
गमों का अपने पूरा वो, हमें हर दर्द सुना बैठे।।
बता कर राज अपने वो, हमें हमराज बना बैठे।
खुशी की हर वजह हमको, न जाने क्यो बता बैठे।।
ललकार भारद्वाज