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1 Feb 2017 · 1 min read

हमने मुहब्बत और इबादत में फर्क नहीं रखा

रात की नमाज तुम सुबह की अजान हो तुम
हमने मुहब्बत और इबादत में फर्क नहीं रखा

लोग कहते है बर्बादियों का शबब हो तुम
समझाने को उन्हें कोई शेष तर्क नहीं रखा

मुफलिसी में भी मेरी मेरे बाकि उसूल हो तुम
टूट कर हमने समझौते का कोई हर्फ़ नहीं रखा

अब लौट भी आओ मेरी हर ख़ुशी हो तुम
याद ना आए हो ऐसा कोई पहर नहीं रखा

मेरी हर गजल में तुम हर नज्म में हो तुम
ना हो तेरा नाम हमने वो कोई वर्क नहीं रखा

मेरे होठों की हसीं, दुखते दिल की दवा हो तुम
ना हो तुम साथ मेरे , ऐसा कोई लम्हा नहीं रखा ।।

रात की नमाज तुम सुबह की अजान हो तुम
हमने मुहब्बत और इबादत में फर्क नहीं रखा

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