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3 Dec 2021 · 7 min read

गोलू देवता मूर्ति स्थापना समारोह ।

गोलू देवता मूर्ति स्थापना ( डोटल गांव – नवंबर 2021 )
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मेरी यात्रा का यहां एक स्वर्णिम समय था नवंबर की ठंडी ठंडी मीठी मीठी सी ठंड ने मेरे पूरे रूह को अपने आगोश में जैसे समेट लिया हो , मैं जैसे ही आनंद विहार से बस द्वारा अपने गांव डोटल गांव की तरफ रवाना हुआ तो नंवबर की यह ठंड भी मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगी , वैसे सामान्य तौर पर देखा जाता है शहरों में इस महीने मौसम सामान्य रहता है , जैसे ही मैं देवभूमि उत्तराखंड में प्रवेश करने लगा तो मौसम ने भी अपनी करवट बदल दी यहां पर शहरों की अपेक्षा ज्यादा मौसम ठंडा था ।

गोलू देवता की मूर्ति की स्थापना की रूपरेखा 1 वर्ष पहले ही तैयार कर ली गई थी , गोलू देवता की मूर्ति और उनके साथ कासीर्ण देवता , और लाकुर देवता की मूर्ति बनाने का आर्डर डोटल गांव मंदिर कमेटी ने राजस्थान से किया , गोलू देवता की मूर्ति का वजन लगभग 1 टन और बाकी दो अन्य मूर्ति का वजन लगभग 30 से 40 किलो वजन था, राजस्थान से यह मूर्तियां गाड़ी में डोटल गांव मंदिर कमेटी द्वारा कालिका मंदिर तक पहुंचाई गई , गोलू देवता की मूर्ति के लिए गांव के लोगों और गांव के बाहर के लोगों ने इसमें बढ़-चढ़कर दान और अपना सहयोग दिया , और जिन लोगों ने भी मंदिर कमेटी को दान दिया उनके द्वारा दिया हुआ दान शिलालेख पर अंकित किया गया ।

अतः सब लोगों की सहमति से यह निष्कर्ष निकला कि मूर्ति स्थापना नवंबर 2021 के दूसरे सप्ताह के मध्य किया जाए ,मूर्ति की स्थापना के लिए 9 नवंबर से 11 नवंबर की तारीख सुनिश्चित की गई , गोलू देवता ,कासीर्ण देवता , लाकुर देवता , की मूर्ति की स्थापना से पहले गांव के लोगों के परामर्श से गोलू देवता की जागर लगवाई गई
( जागर अपने कुलदेवी , देवता की एक पूजा विधि ) ।

गांव के लोगों के सहयोग से जो भी गोलू देवता की मूर्ति स्थापना के लिए जो भी सामान की जरूरत थी वह ऊपर कालीका मंदिर और गोलू मंदिर मैं भिजवाया गया ,
कलश यात्रा से 1 दिन पहले शाम के समय मूर्तियां कालिका मंदिर से नीचे गोलू मंदिर की तरफ लाई गई , गोलू देवता की मूर्ति कालिका मंदिर से गोलू मंदिर में ले जाते समय लोगों ने गोलू देवता की जय जय कारे करें और मूर्ति में ज्यादा वजन होने के कारण भी सुरक्षित पूर्वक गोलू देवता की मूर्ति मंदिर में पहुचाई ।

गोलू देवता की मूर्ति की स्थापना का पहला दिन कलश यात्रा का था इस दिन गांव की सभी महिलाएं अपने पारंपरिक उत्तराखंड पहनावा पिछोडा को पहनकर गोलू देवता मंदिर मैं एकत्रित हुए और अपने सर पर कलश
रखकर गांव से 2 किलोमीटर दूर शिव मंदिर के लिए पैदल यात्रा की , और पुरुषों ने भी शिव मंदिर के लिए पैदल यात्रा की , कलश यात्रा के दिन जब गोलू मंदिर से कलश यात्रा निकली तो यह दृश्य अति मनमोहक और मन को भक्तिमय करने वाला था , जहां गांव की स्त्रियों ने गेहुआ रंग और पुरुषों ने अधिकतर सफेद वस्त्र और बच्चों ने अपनी पसंद के वस्त्र पहने हुए थे तब मानो ऐसा लग रहा था जैसे जमीन में इंद्रधनुष्य सप्तरंग आज स्वयं गोलू देवता के लिए धरती पर अवतरीत होकर उनके भक्ति के जय जय कारे लगाते हुए चल रहें हो ,
सभी महिलाएं बच्चों और पुरुष गोलू देवता की जय जय कार और अपने कुल देवी , देवी देवता की जय जयकार लगाते हुए शिव मंदिर की ओर चले , और रास्ते में कत्यूर देवता की मंदिर की परिक्रमा करते हुए नीचे शिव मंदिर की ओर चल दिए , शिव मंदिर आने पर सभी गांव की महिलाओं ने अपने कलस में शिव मंदिर से नीचे पानी भरा और शिव मंदिर मैं शिव दर्शन किया , भोले बाबा और गोलू देवता , और माता की जय जय कारे से सारा शिव मंदिर और वहां पर उपस्थित सभी लोग और वहां का स्थान शिवमय हो गया ।
हम सभी लोग सौभाग्यशाली हैं कि हमने शिव मंदिर में देवीय महिलाएं और देवीय पुरुषों के दर्शन किए , शिव मंदिर मैं यह अलौकिक का नजारा देखकर मन आनंदित और प्रफुल्लित हो गया , सभी के चेहरे पर एक भक्तिमय भाव रेखाअंकित , हो गया , शिव मंदिर से ऊपर आते हुए सभी लोगों ने पुनः फिर जय जयकारा लगाते हुए गोलू देवता मंदिर की ओर अग्रसर हुए और गांव की महिलाएं ने अपना कलश जिसमें पानी भरा हुआ था और कलश के ऊपर आम के पत्ते लगाए गए थे , ऊपर गोलू मंदिर पहुंचते ही वहां अपना कलश सभी ने रख दिया , पूजा में आए हुए शास्त्री जी ने बताया गोलू देवता की मूर्ति और उनके साथ वाले मूर्तियां पहले दिन जल में रहेंगे , दूसरे दिन अनाज , फल , पुष्प मैं रहेंगी , व अंतिम दिन देवियों मंत्रों द्वारा उन मूर्तियों पर प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी ।

कलश यात्रा के पहले दिन शाम को गोलू मंदिर के बगल में मूर्तियों के लिए उनके आकार का जमीन में गड्ढा खोदकर उनको उसके अंदर रखा और फिर शास्त्री जी के कथन के अनुसार उनमें पानी भर दिया , शाम के समय सूर्य छिप जाने के बाद मंदिर में आए हुए सभी लोगों ने भजन कीर्तन किए और अपने कुल देवी देवता के जय जय कारे करें , भजन कीर्तन के उपरांत सभी वहां उपस्थित जनमानस ने ऊपर कालिका मंदिर में भोजन ग्रहण किया और मंदिर कमेटी के कार्यकर्ताओं नेअगले दिन होने वाले कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करी , कुछ भक्तजन गोलू मंदिर में ही रहे , जब तक मूर्ति स्थापना नहीं हो जाती ।

मूर्ति स्थापना के दूसरे दिन सभी लोग गोलू मंदिर मैं एकत्रित हुए और प्रातः की वंदना करी , फिर शास्त्री जी के कथन अनुसार उन मूर्तियां को जल से निकालकर , उनको गोलू मंदिर के आगे प्रांगण में रखकर उन मूर्तियों को अनाज , फल , पुष्प से ढक दिया , और वहां सभी उपस्थित जनमानस ने भजन कीर्तन कहे , शाम के उपरांत मंदिर में एकत्रित महिलाओं , पुरुषों , बच्चों ने भजन कीर्तन करें और ऊपर कालिका मंदिर में भोजन ग्रहण किया ।

मूर्ति स्थापना का आज तीसरा व अंतिम दिन था सभी लोग बड़े हर्षोल्लास से प्रातः से ही गोलू मंदिर में एकत्रित हुए , व पूरा मंदिर परिसर भक्तिय गानों से गुंजित हो रखा था , मूर्ति स्थापना में आए हुए लोगों के लिए ऊपर कालिका मंदिर में भंडारे की व्यवस्था मंदिर कमेटी के द्वारा पहले ही की जा चुकी थी , आज मानो ऐसा लग रहा था जैसे सूर्य भगवान अपनी सारी चमक समेटे हुए पूरे वातावरण को अपने दूधिया रोशनी से नहलाने आया हो , आज मंदिर के वातावरण में भक्तिमय सुगंधित हवा अपने शांत वेग से बह रही थी ,वहां उपस्थित सभी जनमानस का ह्रदय अपने कुलदेवता के लिए भक्तिमय हो गया , प्रातः काल से ही सभी लोग ने सर्वप्रथम आरती वंदना करी , और उसके उपरांत मूर्तियों को भक्तों ने कलश में आए हुए पानी से , और अलग , अलग सामग्री से नहलाया, उनको घी , तेल का लेप लगाया उसके उपरांत मूर्तियों को वस्त्र आभूषण और उनके हथियार से उनका वस्त्र अभिषेक किया , और शास्त्री जी ने अपने मंत्रों के उच्चारण से मूर्तियों मैं प्राण प्रतिष्ठा की , उसके बाद गोलू देवता की मूर्ति को और लाकूड देवता की मूर्ति को अंदर गोलू देवता के मंदिर में उनके स्थान मैं विराजमान कर दिया और कासीर्ण देवता की मूर्ति को उनके मंदिर में विराजमान कर दिया गया , और फिर अपने कुल देवता की पूजा , पाठ , और उनको फूल , माला पहनाई , और दान , टीका , किया गया , वहां सभी उपस्थित भक्तजनों ने प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियों के दर्शन किए और उनका आशीर्वाद लिया ।

इसके उपरांत थोड़ी देर बाद यज्ञ की तैयारी हुई , इस यज्ञ 11 ,12 जोड़ों ( विवाहित जोड़ा ) को मिलाकर इस यज्ञ हवन का शुभारंभ हुआ और शास्त्री जी और उनके साथ आए हुए पंडितो ने इस यज्ञ मैं होने वाले मंत्रों का उच्चारण आरंभ किया और यज्ञ में डाले जाने वाली सामग्री यज्ञ में बैठे हुए 11 , 12 जोड़ो द्वारा डाली गई , यह यज्ञ हवन दो से तीन घंटे तक चला , इसी बीच मूर्ति स्थापना के दर्शन करने के लिए अलग , अलग पार्टी के समाज सेवी संस्थाएं के नेता लोग भी मंदिर मैं एकत्रित हुए , ऊपर कालिका मंदिर मैं मूर्ति स्थापना मैं आए हुऐ लोगो के लिए भंडारे की व्यवस्था करी हुई थी , मूर्ति स्थापना और हवन की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद सभी मूर्ति स्थापना में आए हुए लोगों ने ऊपर कालिका मंदिर में भंडारा ग्रहण किया और इस गोलू देवता मूर्ति स्थापना के करीब 1000 लोग साक्षी बने ।

मूर्ति स्थापना के अगले दिन मंदिर में उपस्थित लोगों ने दाल भात बनाया और भोजन ग्रहण करने के बाद मूर्ति स्थापना मैं जो भी समान उपयोग किया था उनको सुरक्षा पूर्वक जहां से लाए थे वही छोड़कर आए , और जो भी मूर्ति स्थापना के बाद सामग्री बच गई थी , उसका लेन , देन कर दिया गया ।

गोलू देवता की मूर्ति स्थापना मैं गांव के लोगों ने बढ़-चढ़कर अपना सहयोग दीया , और इस महा उत्सव के साक्षी बने और यह सिद्ध कर दिया की इसलिए आज भी उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है , इस माह आयोजन में उपस्थित उन सभी नवयुवकों का भी सहयोग अग्रिम रहा जिन्होंने दिन रात मूर्ति स्थापना के लिए अपना तन मन धन से सहयोग दिया , मंदिर कार्यकारिणी कमेटी , हमारे बुजुर्गों का भी सहयोग रहा जिन्होंने हमें सही दिशा निर्देश दिए , मूर्ति स्थापना मैं उपस्थित हुए सभी डांगगरियो को कोटि कोटि नमन जिनके दर्शन मात्र से समस्त वातावरण प्रफुल्लित , हर्षोल्लास , भक्तिमय रहा , व उनका आशीर्वाद जन मानस ने प्राप्त किया , और उन भक्तों का भी धन्यवाद जो मूर्ति स्थापना के प्रथम दिन से और अंतिम दिन तक अपना सहयोग हम सब पर बनाए रखा ।

गोलू देवता , लाकूर देवता , कासीर्ण देवता की छत्रछाया हम सभी पर बनी रहे और आने वाले भविष्य में हम इसी प्रकार कार्यक्रम आयोजित करने की हमें सद्बुद्धि और हमारे आने वाली पीढ़ी को अपनी संस्कृति को संभालने की शक्ति भक्ति प्रदान करे !!

गोलू देवता की जय हो ।।
जय मैया ।।

✍️ श्याम सिंह बिष्ट
डोटल गांव
उत्तराखण्ड
9990217616

*शब्दों में किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी ?

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