हमनें पुछा बरखा से
हमने पुछा था बरखा से,
तु बेमौसम क्यों बरसती?
चुरा के नजर कहा बरखा ने,
“पिया मिलन”मे क्यों देरी।
हमनें पुछा था बरखा से,
फिर सूखी क्यों पड़ी धरती?
रुदन स्वर मे वह बोली,
इन्सानों ने तोड़ी सभी लकीरें।
हमनें पुछा था बरखा से,
वेवजह शहर क्यों बनी डरिया(नदी)?
आग.बबुला हो कर बोली,
इन्सानों ने कोई राह ना छोड़ी।।
हमनें पुछा था बरखा से,
रूठी क्यों वह हमसे हैं??
दुखी होकर वह बोली,
खत्म करना चाहता मानव हमें।