हनुमान रावण दरबार में सवैया
हनुमान रावण दरबार में
समान सवैया 32 मात्राएँ
16 -16 पर यति अंत भगण
हनुमान कथन
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जग जननी को हर कर लाया,
तू चोर कुटिल कपटी कायर ।
जितने भेजे मुझसे हारे ,
मैं दास नाथ करुणा सागर ।
लौटा कर मात जानकी को,
हो गया पतित बन जा पावन ।
ले शरण राम की चरण पकड़,
इतनी है विनती सुन रावन ।।
रावण
रावण बोला तब हँस हँस कर ,
बन रहा गुरू पाकर बंधन ।
मेरे आधीन प्राण तेरे ,
नहिं राम सुने करुणा क्रंदन ।
तू चोर चपल चालाक चंट,
घुस गया वाटिका के अंदर ।
कैदी होकर दे रहा ज्ञान ,
तू है बंदर का ही बंदर ।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश