हक
हक के दमन का तो इतिहास रहा है,
कोई जयचन्द तो कोई भक्त रहा है,
याद है मुझे वह पोरश का भी पौरुष,
सूली पर चढ़ कर भी जो शत्रु को ललकार रहा है ।।
हक के दमन का तो इतिहास रहा है,
कोई जयचन्द तो कोई भक्त रहा है,
याद है मुझे वह पोरश का भी पौरुष,
सूली पर चढ़ कर भी जो शत्रु को ललकार रहा है ।।