हकीकत
ज़िन्दगी की हकीकत समझते हैं,
हर लम्हा मस्ती में हम रहते हैं।
अनर्गल बातें हमें अच्छी नहीं लगती,
तभी तो हम नापतौल कर बोलते हैं।
बेमतलब का रिश्ता रखना गंवारा नहीं,
आदत है अच्छाई की अच्छा ही करते हैं।
लोगों को बर्बाद देख हंसना कैसी फितरत,
मदद करना की आदत तो निकल पड़ते हैं।
मेरे शहर की हवा बदली- बदली- सी लगे ,
जहर घोलती हवाए घर से कम निकलते हैं।
कामयाबी देख मेरी लोग मुझे गिराने लगे,
हम गिरने वालो में से नहीं हम नित चलते हैं ।
फ़िजाओ में कैसी घुटन अब बढ रही,
सुकूँन भरी शाम में ‘राज’संग महकते हैं।।
डा राजमती पोखरना सुराना