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5 Oct 2023 · 1 min read

मैं सूरज दूर बहुत दूर

मैं सूरज दूर बहुत दूर
क्षितिज पर उगता हूँ
तपता हूँ जलता हूँ
चमकता हूँ, पर फिर भी
मैं चलता हूँ।
कभी तेज ,कभी हल्की
शुबह की गुनगुनी धूप
खिल-खिलाता हूँ ,
कभी खुले आसमां में ,
कभी बादलों की ओट में,
अपने को छुपा लेता हूँ
मैं सूरज दूूर ————–।
मेरी तेज किरणें ,
जब धरती पर है उतर आती,
सांसें तपाने में फिर, तनिक भर समय नहीं गवाती ,
कौन अपना, कौन पराया
कैसा धर्म , कौन सी जाति
पैड-पौधे या फिर हो प्राणी
मैं सब में, फिर समा जाती
मैं सूरज दूूर————–।
मैं ढलता हूँ ,मैं छुपता हूँ
पर सुबह फिर मैं उगता हूँ
रूकना मेरा काम नहीं,
झुकना मेरी शान नहीं,
चेहरे पर शिकन कभी नहीं,
बदन पर थकन कभी नहीं,
माथे पर चमकती बूंदों पर,
नहीं कोई नाम खुदा
फिर इन्सान, तू इन्सान से क्यों हुआ है जुदा,
मैं सूरज दूर ———————-।
लेेख राज’माही’ 9418071740

1 Like · 192 Views
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