हकीकत को जिंदगी
हक़ीक़त में कितनी दूर..
पर ख़्वाबों-ख़्यालों में कितने क़रीब!
तुम्हारा आना, कुछ पल ठहरना…
और फिर जादू सा ग़ायब हो जाना!
बैठ जाते हो तुम पलकों पे
अक़्सर सुनहरे ख़्वाब बन!
रुपहली चाँदनी बिछी रातों में..
कभी बस जाते मन के भीतर
इक अधूरी आस बन!
बादलों के पार
नीले आसमां के क़रीब!
किसी पहाड़ की चोटी पे खिलते
महकते असंख्य फूलों के बीच!
हम मिले़गे ज़रूर तुमसे इक दिन
सुन ओ मीत मेरे! साथी मेरे जन्मों के…!!