हकीकत की दास्तान
***** हकीकत की दास्तान ******
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क्या सुनाऊँ मैं हकीकत की दास्तान,
अनूठी,अनोखी है दर्द भरी दास्तान।
अपनों ने छोड़ दिया था मेरा साथ,
गैरों ने आ कर पूर्ण की दास्तान।
कौन किसी का बना है भला सहारा,
सदा से रही है अधूरी सी दास्तान।
मोहब्बत के बिन लगे सुना सा जहां,
प्रेम रंगों से हुई है हसीं दास्तान।
दिए हुए जख्म बन जाते हैं नासूर,
पीड़ादायी रही है दर्द भरी दास्तान।
सुख के सभी होतें हैं साथी नाती,
दुख में सदैव अकेली रही दास्तान।
जब हो व्यथित विचलित सा इंसान,
नासमझ सी पहेली है बनी दास्तान।
मनसीरत विरह के गीत किसे सुनाए,
सर्वस्व देख गूंगी,बहरी रही दास्तान।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)