सफ़र
मंजिल का पता नहीं..
सफ़र कभी रुका नहीं..
रूह को सुकून मिले..
ढूंढे एक ऐसी ठौर..
बेवजह मुस्कान लिए..
बढ़ रहा उस और..
उबड़ खाबड़ रास्तों पर..
डगमगाती कदम ताल..
मिलते हुए कुछ दोस्त..
पूछते हैं हालचाल..
अभी शीतल शाम आएगी..
या फिर धूप जलायेगी..
कैसा क्यों ये बदलाव..
क्यों धधक रहा..
समय का ये अलाव..
क्षणभंगुर सी मरीचिका में..
ख़ोज उस शास्वत की..
तलाश जारी है..
या अलाव लील रहा है..
सफ़र को मंजिल को..