सड़कें निगल गईं..
सड़कें निगल गयी हैं सब गांव की गलियाँ ।
कदमों के निशां अब तो बीती बात हो गए ।।
उड़ती थी जहाँ सांझ ढले गो धूलि सुहानी ।
पत्थरों से वहाँ सैंकड़ो आघात हो गए ।।
कटती थी जिनकी छाँव में गर्मी की दुपहरी ।
कट गए वो हरे पेड़ क्या हालात हो गए ।।
इंसान भी पत्थर के होके जी रहे हैं अब ।
सूखे हुए झरनों से जज्बात हो गए ।।
खो गए कहाँ सुनहरी धूप वाले दिन ।
सपने थे उजालों के घनी रात हो गए ।।
लोगों से दूर रहकर कुछ बच गए हैं पेड़ ।
उनके जो हरे थे वो पीले पात हो गए ।।