स्वीकार करो या ठुकरा दो
स्वीकार करो या ठुकरा दो
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ईश! तुम्हारे कई पुजारी ,कई रूप में आते हैं।
तुम्हें चढ़ाने कई भेंट वो लाते हैं।।
साज-बाज और धूप दीप ले,
मंदिर में आते हैं।
मोतियों का हार कीमती,भेंट ला
तुम्हें चढ़ाते हैं।।
एक में हूं भक्तिनी जो कुछ,
साथ नहीं लायी।
प्रेम में डूबी प्रभु की, मंदिर में
चली आयी।।
मेरे पास चढ़ाने को कुछ नहीं,
मंदिर का भोग नहीं।
पर!उर से सुमिरन तेरा,
फिर क्यों तेरा दरश नहीं।।
नहीं जानती पूजा विधि,
मंदिर में चली आयी।
देने को प्रभु कुछ नहीं,
फिर भी नाथ चली आयी।।
मैं दीवानी प्रेम की प्यासी,
हृदय दिखाने आई हूं।
और नहीं कुछ पास मेरे,
इसे चढ़ाने आई हूं।।
अर्पित हे चरणों में सब,
जैसा चाहो स्वीकार करो।
दिया हुआ सब आपका प्रभु,
ठुकरा दो या प्यार करो!!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,