स्वार्थी नेता
स्वार्थी नेता
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भारत देश नित्य विश्वगुरु बनने को, कदम बढ़ा रहा;
यह देख हरेक बुरी आत्मा, कुर्ता फाड़ के कराह रहा;
फिर निज दुश्मन को भी, प्यार से वह गले लगा रहा;
जन-जन का मारा थकाहारा, महाठगबंधन बना रहा।
देखो,कुछ स्वार्थी नेता कैसे निजराष्ट्र को ही चबा रहा,,,,
जिसपे विश्वास करके, सर्वविद्या की भूमि पछता रहा;
जो सदा गुरुजन को, अपने हर हथकंडो से सता रहा;
प्रदेश को बर्बाद कर, वह हिंद देश पर नजर गड़ा रहा;
डूबती नईया वह बचाने को,घर-घर जाति गिनवा रहा।
देखो,कुछ स्वार्थी नेता कैसे निजराष्ट्र को ही चबा रहा,,,,
जिसको सर झुका कर सारा जग, विश्वनेता बता रहा;
कुर्सी हेतु एक लोभी, उसके खिलाफ षड्यंत्र रचा रहा;
देशी शेर को हराने,मिलके चालीस सियार चिल्ला रहा;
राष्ट्र के लुटेरे, एक-दूजे को पीएम मेटेरियल बता रहा।
देखो,कुछ स्वार्थी नेता कैसे निजराष्ट्र को ही चबा रहा,,,,
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स्वरचित सह मौलिक;
…….✍️पंकज कर्ण
…….कटिहार(बिहार)