स्वाभिमान
उस रात किसी ने मुझे झिंझोड़कर जगा दिया ,
उठकर देखा तो सामने एक साया था ,
मैंने पूछा कौन हो तुम ?
उसने कहा मैं तुम्हारा स्वाभिमान हूँ !
अपने स्वार्थ के लिए तुम मुझे भूल चुके हो !
अपने आप से तुम समझौता कर चुके हो !
औरों के हाथों की कठपुतली बन चुके हो !
तुम्हे ये पता नहीं है कि एक दिन तुम्हें
नकार दिया जाएगा !
फिर खोया हुआ समय लौटकर
ना आएगा !
अब भी समय रहते,
स्वार्थ की गहरी नींद से बाहर आओ !
अपने अंतस्थ मुझे जगाओ !
वरना, क्षोभ के सिवा कुछ हाथ न लगेगा !
पश्चाताप की अग्नि में यह जीवन जलेगा !