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14 Jun 2023 · 1 min read

स्वाभाविक

किससे क्या कोई बात करें
बेवज़ह किसी से क्या उलझें
सबकी अपनी-अपनी है पीड़ा
किसके आगे रोयें सिसकें..?

जो सोच रहा है जैसा भी
अपने हालातों के कारण.
हम अपनी नज़र में सही
कैसे उनको भी ग़लत कहें..?

कायम रहना सम्बन्धों का
सामूहिक ज़िम्मेदारी है।
अड़–कर, लड़–कर इन रिश्तों को
बेईमान भला कैसे कर दें..?

फूलों के पीछे कांटों का
होना बिल्कुल स्वाभाविक है
ये चुभन भला रोकें कैसे
किस तरह अकेले सुमन चुनें..?

वह रंग बदलता गिरगिट तो
बदनाम बेचारा है यूं ही
बदले तुम भी बदले हम भी
आरोपित किसको क्यों कर दें..?
© अभिषेक पाण्डेय अभि

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