स्वाधीनता के घाम से।
शुभ-सु हिंदुस्तान हूॅं, देखो मुझे आराम से।
गुलामीं के निशाॅं, दर्दीले जवाॅं पैगाम से।
घाव गहरे दिए पर मुस्कान का आलोक गह।
प्रकाशित हो मिल गया स्वाधीनता के घाम से।
पं बृजेश कुमार नायक
शुभ-सु हिंदुस्तान हूॅं, देखो मुझे आराम से।
गुलामीं के निशाॅं, दर्दीले जवाॅं पैगाम से।
घाव गहरे दिए पर मुस्कान का आलोक गह।
प्रकाशित हो मिल गया स्वाधीनता के घाम से।
पं बृजेश कुमार नायक