स्वातंत्र्य का अमृत महोत्सव
* स्वातंत्र्य का अमृत महोत्सव *
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स्वातंत्र्य का अमृत महोत्सव, भाग्य बदले हैं हमारे।
एक एक कर मिटे जा रहे, दासता के चिन्ह सारे।
अब निकल कर आ गये हम, जब गुलामी के तमस से।
देश ने बदली है करवट, जगमगाते हैं सितारे।
मन में उमंगों को जगाती, चाहतें जब खिलखिलाती।
आनंद है मिलता असीमित, नाव जब लगती किनारे।
छल छद्म के घन आवरण में, शौर्य गाथाएं अनेकों।
जो भी भुलाई जा रही थी, आ रही हैं छवि निखारे।
उत्साह नूतन है भरा मन, स्वप्न विजय के नयनों में।
प्रगति मार्ग पर कदम बढ़े हैं, अदम्य शक्ति के सहारे।
विश्व गुरू है देश हमारा, बढ़ रहा विश्वास जग में।
हर छोर ज्ञान का छूने को, पंख हैं हमने पसारे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)