स्वागत यादों का
स्वागत यादों का
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शब्दों में कैसे बताऊँ मैं अब
हृदय में तुम्हारी चाहत को।
हृदय कपाट हैं खुले सदा
तुम्हारी याद के स्वागत को।।
तुम्हारे लिए तो जागा था मैं
उन अंधियारी रातों को।
बिन बताए ही जाता हूँ समझ
तुम्हारे हृदय की बातों को।
मेरे कान नहीं मेरा दिल सुनता है
तुम्हारे कदमों की आहट को।
हृदय कपाट हैं खुले सदा
तुम्हारी याद के स्वागत को।।
तुम्हे देखे बिना नहीं मेरी तो
हो पाती है कोई भोर।
तुम्हे देखूँ मैं जब भी समक्ष
हो जाता हूँ आनन्द विभोर।।
लो नज़रों को मैंने बिछा दिया
तुम्हारे मार्ग की सजावट को।।
हृदय कपाट हैं खुले सदा
तुम्हारी याद के स्वागत को।।
ले सकती हो कभी भी मेरे
प्रेम की तुम परीक्षा।
कल की छोड़ो चाहे आज लो
जैसी भी हो इच्छा।।
महत्व नहीं देता मैं कभी भी
प्रेम में किसी मिलावट को।
हृदय कपाट हैं खुले सदा
तुम्हारी याद के स्वागत को।।
शब्दों में कैसे बताऊँ मैं अब
हृदय में तुम्हारी चाहत को।
हृदय कपाट हैं खुले सदा
तुम्हारी याद के स्वागत को।।
✍️अवधेश कनौजिया©