स्वर वर्ण का ज्ञान हो (बाल कविता)
अ – अनार के दाने होते लाल
आ – आम रसीले मीठे कमाल
इ – इमली खट्टी होती है
ई – ईट की भट्ठी जलती है
उ – उल्लू दिन को सोता है
ऊ – ऊन से स्वेटर बनता है
ऋ – ऋषि की पूजा करते हैं
वो ईश्वर जैसे होते हैं.
ए – एक से गिनती होती है
ऐ – ऐनक अच्छी लगती है
ओ – ओस से धरती गीली है
औ – औषधि हमने पीली है
अं – अंगूर सभी को भाता है
अॅऺ – ऑख से ऑसू बहता है
अ: – प्रात: सूर्य निकलता है
जग को रोशन करता है.
स्वर वर्ण ही मात्रायें बनती
शब्दों की रचनायें करती
कथ्य कई सारे कह देती
भाव अनेकों उर में भरती.
व्यंग्य नहीं ना शर्म हो
अपनी भाषा पर गर्व हो
स्वर वर्ण का ज्ञान हो
मात्रा की पहचान हो.
भारती दास ✍️