स्वयं को सुधारें
अलग है सुर-ताल, फिर भी हो रहे कमाल, यही जीवन का राग है।
सबमें कुछ-न-कुछ कमियाॅं बसीं, भला कौन शक्स यहाॅं बेदाग़ है?
दूर दिख रहे लक्ष्य की ओर बढ़ें, कुछ यों अपना स्वप्न साकार करें।
हर कदम पे स्वयं को सुधारें, सारी कमियों को सहर्ष स्वीकार करें।
ईश्वर ही विनाशक, ईश्वर ही रचयिता, ईश्वर ही पूर्ण सामर्थ्यवान है।
ईश्वर की ओर से मिले संकेत को, फिर क्यों नहीं समझा इंसान है?
प्रभु व प्रकृति की न कोई सीमा, अब प्राणी न इससे प्रतिकार करें।
हर कदम पे स्वयं को सुधारें, सारी कमियों को सहर्ष स्वीकार करें।
क्या तुमने कभी किसी जीव को, दूसरे जीव से लड़ते हुए देखा है?
प्रकृति का क्रम भंग करते हुए, क्या दिन-रात को झगड़ते देखा है?
सत्कर्मों को आत्मसाध करने से, पूरी मानव-जाति का उद्धार करें।
हर कदम पे स्वयं को सुधारें, सारी कमियों को सहर्ष स्वीकार करें।
मुख की निंदा, सोच की कुंठा, मन का अहम व इच्छाओं का मोह।
ऐसी दुर्भावनाओं के होने से ही, मनुष्य की प्रगति पे लगती है टोह।
बुराई का अंत देर में होता, आप स्वयं ही इनपे हमला हर बार करें।
हर कदम पे स्वयं को सुधारें, सारी कमियों को सहर्ष स्वीकार करें।
कोई चित्त है शान्त सागर के जैसा, किसी चित्त में छिपा बवंडर है।
भला-बुरा, सोम-सुरा, फूल-छुरा, सब कुछ हमारे दिल के अंदर है।
अपने अंदर छिपे दैत्य को पहचानें, समय रहते उसका संहार करें।
हर कदम पे स्वयं को सुधारें, सारी कमियों को सहर्ष स्वीकार करें।
जो हर किसी को मार्ग दिखाए, ऐसी कोई मशाल बनकर दिखाऍं।
जिससे हर पीढ़ी कुछ सीखे, ऐसी अद्भुत मिसाल बनकर दिखाऍं।
किनारे को देखके कुछ न होगा, हर दरिया को तैरकर ही पार करें।
हर कदम पे स्वयं को सुधारें, सारी कमियों को सहर्ष स्वीकार करें।