$ स्वयं को पहचानो
#स्वयं को पहचानो
शक्ति रूप हैं आप, गुणों के मानो स्वामी।
हीनभाव दो छोड़, दूर होंगी नाकामी।।
लिए रोशनी भानु, चाँदनी हिमकर देता।
मनुज करे श्रम नेक, सफलता हर छू लेता।।
कमज़ोरी होती सोच में, सोच बड़ी में शान है।
अंतर आईना झाँकिये, इसमें हीरक खान है।।
जाति धर्म हो क्षेत्र, दंभ इनका मत करना।
होता कर्म महान, ज्ञान इसका ही भरना।।
हरपल देता सीख, पूर्ण निज को मत मानो।
मान लिया जो पूर्ण, हार खुद की ये जानो।।
सरिता-सागर के बीच में, जितनी उठें हिलोर हैं।
उतने जीवन में समझिए, परिवर्तन के छोर हैं।।
भ्रांति तुच्छता रोग,लिए फिरते अभिमानी।
सरल सहज जो लोग, नहीं उनका भी सानी।।
अब्दुल जैसा नेक, नूर मालिक का होता।
गीता संग कुरान, प्रेम तरु ज्यों बोता।।
प्रथम पुरुष बनके देश का,जीता जीवन आम जो।
मैन मिसाइल कहते सभी, महापुरुष रब नाम वो।।
हों सब तनिक कलाम, सलामी जग की होती।
रोता भ्रष्टाचार, भेद की जननी रोती।
चोर ज़ार सब सून, डकैती मुँह की खाती,
प्रेम दीप की ज्योति, द्वार हर घर सुख पाती।।
होते नव आविष्कार सब, स्वर्ग धरा पर नाचता।
बच्चा-बच्चा इस देश का, स्वप्न नवल नित बाँचता।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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