स्वयं की तलाश
मैं प्रतिमा नहीं
दिव्य प्रेम का स्वरूप हूँ,
झीने आवरण में लिपटी
लौकिक से अलौकिक की ओर
सत्य, शांति की ओर प्रयाण करती
स्वयं में स्वयं की तलाश हेतु
एक सुरक्षा कवच लिए स्थापित हूँ…
एकांत की चाहत लिए
सत्य की खोज में
संसार छोड़ बैठी हूँ,
मैं निराकार में साकार का
अन्वेषण कर रही हूँ,
अदृश्य में दृष्टव्य खोज रही हूँ
ब्रह्म ज्ञान में विलीन
अपनी आत्मा में
ईश्वर तलाश रही हूँ…
मैं शंकित हूँ पर पराजित नहीं हूँ
मैं छुपी हूँ पर लुप्त नहीं हूँ,
थमती श्वासों में
जीवन तलाश रही हूँ,
रुदन में
हँसते चेहरे तलाश रही हूँ,
निर्जीव शरीर में
आत्मा तलाश रही हूँ…
मैं अंधकार से प्रकाश
की ओर हूँ,
इहलोक से उहलोक तक
मैं यहीं-कहीं हूँ,
मिथ्या से निर्लिप्त
अनंत से अंतस तक
स्थूल से सूक्ष्म की ओर अग्रसर
पारलौकिक शक्ति में
स्वयं की तलाश कर रही हूँ
खुद से मुलाक़ात कर रही हूँ।
रचयिता—
डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’