स्वप्न कुछ
** गीतिका **
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स्वप्न कुछ सबको सलोने दीजिए।
नव उमंगें कम न होने दीजिए।
बोनसाई बन गया है पेड़ का।
बेवजह मत बोझ ढोने दीजिए।
खूब फलने फूलने की चाह के।
पल सुहाने यूं न खोने दीजिए।
स्वप्न सुख के देखना सब चाहते।
चैन से कुछ वक्त सोने दीजिए।
देव अर्चन की बहुत हैं चाहतें।
पुष्प माला में पिरोने दीजिए।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी, हिमाचल प्रदेश