स्वंय की खोज
आज शीशे पर
मेरा पैर पड़ गया,
अपना ही अक्स
टुकडों में लगा।
क्या हूँ मैं,
कौन हूँ मैं,
मुझको खुद ही नही पता।
मेरा रूप ही आज,
मुझे भ्रमित कर रहा।
क्यों खुद से,
खुद को छुपा रही हूँ,
क्यों दुनिया को दिखा रही हूँ,
की मैं खुश हूँ।
अपने को क्यों
बांट रही हूँ,
उसके लिए जो
मेरा नहीं,
किसी का भी नहीं।
ये देह!
नश्वर है।
सारा जग नश्वर है।
ये संसार
केवल मोह है,
और मैं इस,
मोह से निकलना चाहती हूँ।
लेकिन…
ईश्वर की शरण में भी नही…
सिर्फ अपने लिए,
खुद को
समझने के लिए।।।।।