स्मृति
बंद खिड़कियाँ
गर्द पड़े परदे
इन खिड़कियों को मत खोलो
परदों को मत सरकाओ
इनसे जो सूरज की रोशनी
छनकर आती है
झाँकती है उनमें कुछ स्मृतियाँ
फिर वही सर्द हवाओं का छुअन
तन में सिहरन
विकल मन में कुछ चुभन
ये वे स्मृतियाँ हैं
जिन्हें
क्षितिज के उस पार
अस्ताचलगामी सूरज के साथ
दरिया में डुबोये थे
वे स्मृतियाँ
जिनके लिये
जागती आँखों से सोये थे
या वे
जिनके लिये
मुस्कुराते हुए अंतस भिगोये थे
उन विस्मृतियों से गर्द न झड़ने दो
उन स्मृतियों को पुनः न उभरने दो।
-©नवल किशोर सिंह