स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में….
स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में ….
दुआ-बद्दुआ जिस-जिस से मिली फलती रही
किस्मत भी टेढ़ी-मेढ़ी चाल अपनी चलती रही
झुलसता रहा जीवन संघर्ष-अनल-आवर्त में
प्रीत-वर्तिका भी मद्धम बीच रिदय जलती रही
नेह-प्यासा मन भ्रमित हो तप्त मरू तक आया
मरीचिका-सी जिंदगी भुलावा दे दे छलती रही
साँझ ढले घिर आया तमस अमा का जिंदगी में
भीगी-भीगी सी शम्आ बुझती रही जलती रही
उफ, कैसा नूर था उस चन्द्र-वलय से आनन में
हर शब ही मन में चाँदनी घुलती-पिघलती रही
यूँ ही जगते रात बीती नींद कहाँ और चैन कहाँ
स्मृति-बिम्ब उभरे नयन में चित्रपटी चलती रही
तामझाम समेट सब जग से बैठी ‘सीमा’ राह में
मौत दर तक आते-आते जाने क्यों टलती रही
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“मृगतृषा” से