स्पर्धा
आगे बढ़ने को आतुर हैं, दो पक्ष यहां
स्पर्धा में छूट गया इनका, लक्ष्य यहां
द्वंद नही,न द्वेष था, बस केवल आवेश था,
अनन्त परिधि में रहने वाले,
इक बिंदु विशेष पर अटक गये,
लोचन में नृप मुकुट दिखे,
नष्ट हुए सत् कर्म यहां,
भ्रष्ट हुए सबके धर्म यहां,
स्पर्धा में छूट गया इनका, लक्ष्य यहाँ
आगे बढ़ने को आतुर हैं, दो पक्ष यहां
न कुछ विशेष रहा, न कुछ अवशेष रहा
मृत मन, निःतेज ललाट, क्लेश अब शेष रहा
वृद्धी, सिद्धी से मन खिन्न हुआ,
वैभव प्रांगण में मन लोट रहा
देव-देव कहके निकले, दानव का सब रूप यहां
पीताम्बर ओढ़े हुए, आडम्बार की खाल यहां
स्पर्धा में छूट गया इनका, लक्ष्य यहाँ
आगे बढ़ने को आतुर हैं, दो पक्ष यहां