** स्नेह भरी मुस्कान **
** गीतिका **
~~
मुखड़े पर खिलती रहे, स्नेह भरी मुस्कान।
बेगाना कोई नहीं, सबको अपना मान।
सहज भाव से ही हमें, करने हैं निज कर्म।
सबको तो मिलती नहीं, सभी सुखों की खान।
मिटी तमस की कालिमा, हुई सुहानी भोर।
राही निज गंतव्य की, ओर करें प्रस्थान।
जनहित कार्य महान है, इसी हेतु कुछ लोग।
शंकर बन सबके लिए, कर लेते विषपान।
दूर बहुत होते मगर, फिर भी दिखते पास।
अपनेपन की भावना, देती यह संज्ञान।
कूंए के मेंढक बने, देखा कब संसार।
बिना ज्ञान के हो नहीं, सकता है उत्थान।
कदम बहक जाते सहज, यह दुनिया की रीत।
यौवन की मदहोशियां, जब चढ़ती परवान।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २२/०९/२०२३