स्त्री
हां मैं स्त्री हूं
न कामुक हूं न अबला हूं
न पत्नी हूं न सबला हूं
मैं कात्यायनी अम्बा हूं
मंगल सूत्र नहीं पहचान मेरी
खड्ग पिनाक धारणी हूं
हां मैं स्त्री हूं
मैं सजती स्वयं के लिए
मेरा सिंगर अनादि के लिए
मेरी सोच कल्याण के लिए
जीवन सर्वशक्तिमान के लिए
मैं शूल त्रिशूल धारणी हूं
मैं मंत्रों गायत्री का महाछंद
मैं नहीं चाहती कोई मकरंद
मैं संयोग वियोग से ऊपर
मैं गजगमीनी पदमा हूं
मैं ब्रह्मचारिणी हूं
मैं पराश्रित नहीं पुरुष दंभ
मैं मुक्त भाव लिंग अभंग
मैं ज्ञान प्रसूता वेद छंद
मैं संगीत सुषमा रश्मि कंद
मैं सविता प्रवाहिनी हूं
हां मैं स्त्री हूं
तन के क्षणिक सुख की अभिलाषी नहीं हूं
भौतिक जगत की मै प्यासी नहीं हूं
निर्मल जल धारा अनवरत सदियों की
मैं ही वसुंधरा धारणी हूं
हाँ मैं स्त्री हूँ