स्त्री
माएँ
होती हैं पूजनीया
पुरूष का बड़प्पन।
बहन लज्जा का प्रतीक
मरने–मारने को उतारू
रक्षक पुृरूष।
रक्षाबंधन की मर्यादा का
अक्षरशः पालन।
बेटियाँ
आँखों के तारे
दुलार‚प्यार की बौछार
पुरूष के मन की आद्र्रता
वात्सल्य सुख।
रिश्तेदार औरतें
सुख–दुःख की साथिनों की तरह
पुरूष को मान्य।
यानि कि स्त्री मान्य।
फिर स्त्री–पत्नी
पुरूष के द्वारा ही
बना दी जाती हैं
अबला‚पददलित‚शोषित‚
बेबस और मूक
तबला और ढ़ोलक
पैर की जूती की संज्ञा
दाँव पर लगा दी जानेवाली
एक जिन्स।
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