-स्त्री
अपनी इच्छाओं को अपने अंदर समेट लेती है
अपनी मर्यादा में रह आग की तरह जलती है
अंदर से तपन बाहर से शीतल दिखती है
सपनों के पंखों को काट सिमटी रहती है
अपने आंचल में सभी गमों को छिपाए
सभी को खुशियां बांटती रहती है
बलिदान, त्याग की मूर्ति… दीए की बाती जैस
खुद जल कर रोशनी सारे जहां में फैलाती है
असफलताओं को चुनौती देकर
निराश कभी नहीं होती है
लहरों की तरह……… रोज उठती है ,
गिरती है फिर भी खुद ही संभलती है
क्योंकि तू स्त्री है!!
यही तेरी फिकरत है।
–सीमा गुप्ता