स्त्री हो तुम !
स्त्री हो तुम !
पंखों की ख्वाहिश् रखती हो
ऊँची उड़ान् भरना चाहती हो
सुनो…..स्त्री हो तुम !
भर कर विश्वास की उड़ान् अपने पंखों का
सम्मान करना ।
शिक्षा ग्रहण करना चाहती हो
शिक्षित कहलाना चाहती हो
सुनो…..स्त्री हो तुम !
बिखेर कर प्रकाश ज्ञान अपनी शिक्षा का
सम्मान करना ।
रंगों की ख्वाहिश करती हो
सजने संवरने का शौक रखती हो
सुनो…..स्त्री हो तुम !
ओढ़कर हया का पर्दा अपने संस्कारो का
सम्मान करना।
स्वतंत्रता की मांग करती हो
आज़ाद होना चाहती हो
सुनो…..स्त्री हो तुम !
खींच कर अपनी मर्यादा की लक्ष्मण रेखा
अपनी आजादी का सम्मान करना।
अपनी बात रखने की मांग करती हो
बोलने का हक़ चाहती हो
सुनो…..स्त्री हो तुम !
खोल कर विचारों का संविधान अपने
निर्णय् का सम्मान करना।
सुरक्षा की मांग करती हो
घूमना फिरना शौक तमाम रखती हो
सुनो…..स्त्री हो तुम !
शक्ति रूप धारण कर अपने सतित्व का
सम्मान करना ।
ग्रहलक्ष्मी से लेकर
काली की तलवार तक
सुनो…..स्त्री हो तुम !
उठाकर वीणा सृजन का अपने स्त्रीत्व
का सम्मान करना ।
– रुपाली भारद्वाज