स्त्री श्रृंगार
भद्रकाली का रूप छुपा स्त्री में,उसे बिंदी शांत कराती है।
सारी नकारात्मकता स्त्री की,काजल लगते ही चली जाती है।।
होठों पर वो लगा कर लाली,जीवन में प्रेम के रंग बिखराती है।
पहन के नाक में नथनी हर स्त्री,करुणा का सागर बन जाती है।।
कानो में वो पहन के कुंडल,स्त्री कितनी दयावान बन जाती है।
बांधती है परिवार को चूड़ियों में,इसलिए कभी भी चूड़ी नही मौलाती है।।
पहन के वो पाजेब जब सारे घर आंगन में लहराती है।
मचलती फिरती उसकी खनक पर,प्रेम में वो बंध जाती है।।
अपनी रूपसज्जा के रूप में स्त्री,अपने अंदर पूरा ब्रह्मांड समाती है।
यही सनातन की संस्कृति है, यही स्त्री को विश्व में सबसे महान बनाती है।।
पूछे विजय बिजनौरी तुमसे क्यों आज की नारी पश्चिमी सभ्यता को अपनाती है।
और इसी सभ्यता की आड़ में नारी क्यों अर्धनग्न हो जाती है।।
क्यों कर आज की नारी अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलती जाती है।
और इसी गलती के कारण वो समाज के भेड़ियों का शिकार बन जाती है।।
हर मां बाप को अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा देना जरूरी है।
आज के युग में धर्म की शिक्षा,बाकी सभी शिक्षा से ज्यादा जरूरी है।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी