स्त्री मन
प्रेम में स्त्रियाँ
ढूँढती नही
केवल सुन्दर तन…
वो ढूँढती हैं
ऐसा मन…
जिसमें हो पिता
सा बड़प्पन…
जगा दे स्नेह
ऐसा अपनापन..
ममता उमड़े
ऐसा मासूम पन…
क्योकि हर स्त्री
के अन्दर माँ
होती है और
होती है एक
बेटी…..
पर पुरुष कृष्ण सा
नहीं है पूर्ण …
कर नहीं सकता
कभी पूरा स्त्री
की यह चाहत…
वह एक साथ पति,
प्रेमी, पिता, पुत्र
का रूप धर ही
नहीं सकता…
अपने अहम में उलझा
समझ ही नहीं पाता
नारी की चाह….
पर नारी फिर भी
गढ़ लेती है
उसमें अपनी सी मूरत..
क्योंकि महारत हासिल है
उसे गुडडे गुड़ियों
के खेल में गुडडे का
रूप बदलने में…
काश पुरुष भी
बचपन से खेलता
गुडडे गुड़ियों का खेल
होती उसकी भी एक
गुड़िया, सजाता, संवारता
उसे, करके बात समझता
उसके मनोभाव….
तब होती मिल बैठ
बराबरी की बात…
दोनों के पास होता
प्रेम का हर अंदाज….
सलिल शमशेरी “सलिल