स्त्री न देवी है, न दासी है
स्त्री न देवी है, न दासी है
न प्रसन्नता की मूरत
न उदासी है।
न चंडी है, न काली
न ममता की मूरत
न ईश्वर की सूरत
नारी केवल श्रद्धा है
यह भी सच आधा है
नारी को कनक कली सी कामिनी
कहने में भी बाधा है
वह नीर भरी दुख की बदली
भी नहीं ही है
न आंचल में दूध और
आंखों में पानी ही
उसकी कहानी है
पुरुषों का बताया स्वरूप नहीं
नारी की पहचान
नारी से जानिए
नारी को उसके असल
रूप में पहचानिए
नारी है एक मां
बिलकुल वैसे ही जैसे
पुरुष पिता है
नारी है एक बहन
जैसे पुरुष है भाई
नारी पत्नी भी है
क्योंकि पुरुष पति है
वह प्रेयसी है
अपने प्रेमी नर की
वह डॉक्टर है, अफसर है
प्रोफेसर है, वैज्ञानिक भी है
खेतों में खटती किसान है
मजदूर है, विद्वान है
नेत्री है, अभिनेत्री है
व्यापारी और कवयित्री है
चलाती है कार भी
उड़ाती है जहाज भी
सड़कों पर ट्रैफिक भी
करती नियंत्रित है
पुलिस में अफसर है
फौज की सिपाही है
और तो और चोर, डाकू
व हत्यारी, जालसाज भी है नारी
वो सब कुछ जो होता है
या हो सकता है पुरुष
सब कुछ होती और
हो सकती है नारी
ममतमयी, दयालु, सहायिका
प्रेम की मूरत, ईश्वर की सूरत
हो सकता और होता है
पुरुष भी
फिर क्यों ताकतवर नारी को
मर्दानी व भावुक पुरुष को
जनाना कहकर पुकारते हो?
क्यों दो इंसानों को
अलग-अलग सीमाओं
में बांधते हो?
अर्द्धनारीश्वर को पूजने वाले तुम
स्त्री में पुरुष और पुरुष में स्त्री
देख कर हंसते क्यों हो?
जिस दिन पुरुष तुम्हारी
परिभाषा के अनुसार पूरा पुरुष
और स्त्री उसी परिभाषा से
पूर्ण स्त्री हो जाएगी
उस दिन सृष्टि
नष्ट हो जाएगी
क्योंकि दोनों को
एक दूसरे का पूरक
केवल कहा नहीं जाता
वे होते हैं
और अधूरे इंसान
पूरे काम नहीं
कर सकते हैं।
डॉ. मंजु सिंह गुप्ता