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22 May 2024 · 1 min read

स्त्री जब

एक स्त्री जब, करती है आंख मूंदकर
तुम पर विश्वास, करती है सर्वस्व न्यौछावर
जब टूटते हो तुम जोड़ती है प्यार कर
जब उखड़ते हो तुम रोकती है डांटकर

मगर फिर भी गर इज्ज़त न करो उसकी
तो धिक्कार है तुम पर, जल्लाद हो तुम
गर लांछन लगाते हो, शक करते हो उसपर
तो मुंह मोड़ेगी स्त्री जब, देखोगे बर्बादी तुम.

©️ रचना ‘मोहिनी’

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