स्त्रीत्व समग्रता की निशानी है।
आशय व्यक्त करे कैसे, स्त्रीत्व समग्रता की निशानी है,
वाक्यों, शब्दों की द्योतक भी है, और स्वयं में पूर्ण कहानी है।
भावों की अनावृत परिचर्चा वो, जिसका आयाम स्वाभिमानी है,
कभी प्रशांत के तल सी संवेदनाएं उसकी, और निःशब्द मन बर्फानी है।
प्रेम के आधार की परिभाषा में वो, बिखराव में बनती कुर्बानी है,
अग्नि से जागृत संयम जिसका, और पहचान संघर्षों से पुरानी है।
नैसर्गिकता के मूल में है वो, जिसके बिना प्रकृति बेमानी है,
जीवन के युद्ध में साथ हो जिसका, ऐसी गुमनाम सी वो सेनानी है।
पृथ्वी पर जननी बनती वो,आयाम ये वरदानी है,
यथार्थ और कल्पना से परे, प्रबल निष्ठा उसकी आसमानी है।
इच्छा और त्याग में समाहित है वो, शक्ति के प्रतिरूप में भवानी है,
जय और विजय में गूंज है जिसकी, उसकी ख्याति क्या सुनानी है।