स्त्रियों का स्त्रियों से घृणा
मेरी प्यारी बेटी ‘ ओशी ‘
दुनियां को खूबसूरत ही होना था
प्रेम प्यार से लबा लब भरे होना था
नानी दादी की परिकथा सा ही रहना था
मगर कुछ प्यारे में हारे हुए लोग
इतिहास के कुछ अभागे लोग
प्यार का जिन्हें हुआ न कभी भोग
उन लोगों ने सारा का सारा स्वांग गढा
जिसे औरतों ने अपने हिसाब से पढ़ा
किसी ने कहा :
स्त्री नरक का द्वार होती है ‘
किसी ने कहा :
‘ पति के पैरों के धोबन से ही शुद्ध हो सकती है ‘
वो औरतें जिन्हें किसी ने नहीं छुआ प्रेम से
जिनके बेनी में किसी ने नहीं लगाया बेली का गजरा
जिन्हें बच्पन में ही वैधव्य का श्राप लगा
जो घरों में रहीं तो जरूर, मगर…
घर के एक बासी से कोने में, उदासी को ढोने में
बीतता रहा जिंदगी जिनका रोने में
उन्होंने इसे बड़े ध्यान से सुना
और अपने अचेतन दुखी मन में गुना
उन्हें कृष्ण से तो प्रेम था, कृष्ण को उन्होंने पूजा
मगर राधा,मीरा और गोपियों से किया…
घृणा, अगाध घृणा
करती भी भला क्यूं नहीं, उनके लिए
प्रेम के सारे द्वार जो बन्द कर दिए गए थे
उनके लिए प्रेम को पाप कर दिए गए थे
उन्होंने हांथ में तुलसी के माला को रखा
कंठ में कृष्ण और हृदय में अगाध घृणा
अपनी ही जाई जात से
तमाम प्रेम में परी औरतों से
जताया घृणा, अगाध घृणा
जिन्हें प्रेम था, पुरुषों से
जिन्हें पता था अपने स्त्री होने की सच्चाई
जिन्हें पता था, स्त्री और पुरुष को भेजा गया है
करने के लिए प्रेम, अगाध प्रेम
लुटाती रहीं वो उन पे अपनी घृणा को
और उन्हें भी बनाया अपने जैसा
पीढ़ी दर पीढ़ी बांटती रही वो
स्त्रियों का प्रेम में परी स्त्रियों के लिए घृणा
प्रेम सूखा नहीं था उनके अंदर का
मगर प्रेम वर्जित था उनके लिए
और वर्जना उन्होंने अपने लिए
और अपनी जैसी तमाम स्त्रियों के लिए स्वीकारा था
तुम्हें याद रखना होगा,
और बचाना होगा खुद को
और अपनी जाई जात को इन वर्जनाओं से
तुम्हें प्रेम करना होगा खुद से और सब से
स्त्री पुरुष सब से,
ताकि इतिहास के वो अभागे लोग
जो आज भी हमारे बीच बांट रहें है
स्त्रियों का स्त्रियों के प्रति घृणा
उन्हें दफनाया जा सके, इतिहास के पन्नों में
बच्चे प्रेम से ही दुनियां बन सकती है खूबसूरत
~ सिद्धार्थ