कछुआ और खरगोश
कछुआ और खरगोश
नंदनवन में एक खरगोश रहता था। नाम था उसका- चिपकू। चिपकू बहुत घमंडी, बड़बोला तथा चटोरा था। एक दिन वह एक पेड़ के नीचे बैठा आराम कर रहा था। उधर से लोमड़ी मौसी गुजरीं। दुआ सलाम के बाद मौसी बोली- ‘‘क्या बात है बेटा चिपकू ! कुछ परेशान से लग रहे हो।’’
चिपकू बोला- ‘‘क्या बताऊँ मौसी जी, सालों पहले एक पूर्वज ने हमारी नाक कटा के रख दी है। हमारी गिनती संसार के सबसे तेज दौड़ने वालों में होती है, पर एक कछुआ से हारकर उसने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी है।’’
लोमड़ी मौसी बोेलीं- ‘‘बेटा चिपकू, यदि तुम चाहो तो इस कलंक को मिटा सकते हो।’’
चिपकू ने आश्चर्य से पूछा- ‘‘वो कैसे मौसी जी ?’’
लोमड़ी मौसी बोलीं- ‘‘एक बार फिर कछुआ के साथ दौड़ लगाओ और उसे हराकर इस कलंक को हमेशा के लिए धो डालो।’’
चिपकू ने पूछा- ‘‘क्या ऐसा हो सकता है मौसी ?’’
लोमड़ी मौसी बोेलीं- ‘‘हाँ-हाँ क्यों नहीं।’’
चिपकू प्रसन्नता से बोला- ‘‘मौसी, यदि तुम एक बार फिर कछुआ को दौड़ के लिए राजी कर दो, तो मैं ही नहीं, पूरी कछुआ जाति आपका अहसान मानेगी।’’
लोमड़ी मौसी बोली- ‘‘ठीक है, मैं कोशिश करती हूँ।’’
लोमड़ी मौसी कछुआ के पास गई। पहले तो वह ना-नुकूर करता रहा पर लोमड़ी मौसी के बार-बार उकसाने और धिक्कारने पर दौड़ने के लिए राजी हो गया।
निश्चित दिन और समय पर दौड़ शुरु हुआ। महाराज शेर सिंह इसके निर्णयक बने। मुकाबला देखने के लिए जंगल लाखों जानवर इकट्ठे हुए थे। महामंत्री गजपति नाथ ने हरी झंडी दिखाकर दौड़ शुरु करवाई।
खरगोश बहुत तेज दौड़ा। कुछ दूर जाने के बाद उसने पीछे मुड़कर देखा तो कछुआ नहीं दिखा, पर चने के हरे भरे खेत दीख गए। वह खुद को न रोक सका। चने तोड़ तोड़कर जल्दी-जल्दी खाने लगा। थोड़ी देर बाद उसे चक्कर आने लगा और वह बेहोश हो गया।
उधर कछुआ ने धीरे-धीरे चलकर दौड़ पूरा कर लिया।
महाराज शेरसिंह ने उसे विजेता घोषित कर पुरस्कृत किया।
कीड़ों से बचाने के लिए किसान ने चने के खेत में कीटनाशक दवाई का छिड़काव किया था। बिना साफ किए खाने से कुछ दवाई चिपकू खरगोश के पेट में चली गई थी।
देर रात जब उसेे होश आया तो वह समझ गया कि एक बार फिर बाजी हार चुका है।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़