स्कूल के वो दिन
हर पल मुझे एक ही ख्याल आता है
कैसे छोडु वह मंदिर जिसने मुझे आगे बढ़ना सिखाया है
पहले दिन रोते-रोते स्कूल आई थी
आज रोते-रोते स्कूल से जा रही हूं
इन दो पलो के अलावा हर पल मुस्कुराया है
बाहर हर किसी से बात करने में डरते थे
स्कूल सिर्फ दोस्तों से बात करने के लिए आए हैं
वह पहला दिन याद आता है जब टीचर ने मुझे
बात करने के लिए बोलने को कहा था और तब से
आज तक खुद को बोलने के लिए डांट खाते ही पाया है
घर में मां के हाथ का खाना अच्छा नहीं लगता
और स्कूल में पता नहीं किस-किस का टिफिन खाया है
गजब का स्वाद था उस खाने में
जैसे ईश्वर ने जन्नत से खीर भिजवाया है
अजब सी कशमकश थी दौड़ कर बस चढ़ने में
जैसे आसमां की सारी परियों का प्यार एक साथ बरसने आया है