सौदा मेरी मुस्कान का सस्ता नहीं होता !!
गर मुझको मयस्सर ये अँधेरा नहीं होता !
जुगनू की वाफाओं को मैं समझा नहीं होता !!
ये इश्क मेरे दिल में यूँ सहमा नहीं होता !
गर तल्ख़ तेरे हुस्न का लहज़ा नहीं होता !!
सूरज को गुमाँ खुद पे है या मुझसे गिला है !
क्यों मेरी ही रातों का सवेरा नहीं होता !!
इक एक हँसी पर हैं गिरे अश्क हज़ारों !
सौदा मेरी मुस्कान का सस्ता नहीं होता !!
मुफ़लिस नहीं होते मेरे सपने कभी ऐ दोस्त !
ख़्वाबों पे हकीकत का जो कर्ज़ा नहीं होता !!
शायद ये ज़माना न समझता मुझे कातिल !
बचपन में जो नश्तर से मैं खेला नहीं होता !!
महफ़िल में किसी “दीप” न मिलते तुझे आँसू !
इंसाँ जो अगर तुझ में भी ज़िंदा नहीं होता !!