सौंदर्य उसका
आश्चर्य है मुझे
तुम्हारे सौंदर्य पर
दयनीय है जीवन उनका
जिन्हें ज्ञान नही तुम्हारे अलौकिक सौंदर्य का
तुम्हारे सौंदर्य के मोहपाश ने
नहीं छोड़ा है मार्ग मेरी मुक्ति का
हो नहीं सकता विरक्त मैं
तुम्हारे तन के अंगों से निकली कांति
मेरी दृष्टि को ठहरा देती है तुम्हारे तन पर
तुम्हारे आँचल की छाँव
ठंडक देती है मेरे विचलित मन को
तुम्हारे अंगों की बनावट में
पवन के वेग से जब होती है सिहरन कोई
दौड़ जाती है कंपन मेरे रग-रग में
क्या दृष्टिहीन हैं वो व्यक्ति
जिन्होंने देखा नहीं मुड़कर तुम्हें
या मर चुकी हैं भावनाएँ उनकी
कदाचित् शेष नहीं है जीवन उनमें
जिन्हें प्रेम नहीं तुम्हारे रंग से
जिन्हें नहीं होता गर्व तुमसे प्रेम होने का
मुझे है गर्व
मेरे इन नेत्रों ने देखा है तुम्हें
तुम्हारे हरेक अंग को
हरेक अंग को बार-बार
तुम्हें यौवना होते हुए देखा है मैंनें
तुम्हारे तन के हर उभार को
तुम्हारे तन की लालिमा प्रज्ज्वलित करती है संसार को
मैंनें देखा है तुम्हें
और मैं देखता रह गया
तुम्हारा सौंदर्य
आश्चर्य है मुझे
तुम्हारे अलौकिक सौंदर्य पर
मैंनें देखा है
प्रेम के रंग को
स्वच्छ, निर्मल, निश्छल
प्रत्येक को अपने मोहपाश में
बाँधने को सज्ज